गलियों में सजा इलाहाबाद
लज्जत से रचा इलाहाबाद
मक्खन की सुबह इलाहाबाद
रबङी की शाम इलाहाबाद
आयें जनाब इलाहाबाद
गंगा किनारे बसा इलाहाबाद
लस्सी पे मचल जाइये
कुल्फी पे पिघल जाइये
फालूदे में उलझकर फिर
गोलगप्पे से जा टकराइये
कचौरी कि जान इसमें
मिठाइयो की बेइंतेहा किस्में
मैंगो शेक की बङी रस्में
पान की गिलौरी पे खायें कसमें
सुलाकी के लड्डु से रंगत
बर्फ के गोलों की ठंडक
टिक्की बताशों की संगत
दिल कि पूरी हुयी मन्नत
आलू पे हरी धनिया
शिकंजी पे झूमी दुनिया
दशहरी खाके बनिए आम
कुल्फी खाके होए बदनाम
आयें जनाब इलाहाबाद
गंगा किनारे बसा इलाहाबाद
गलियों में सजा इलाहाबाद
लज्जत से रचा इलाहाबाद
हम सब की शान है इलाहाबाद
Monday, 3 July 2017
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